फूलों से सीखें जीने की कला

         वातावरण में खुशबु और सौंदर्य बिखेरते, मन को ताजगी और प्रसन्नता देने वाले फूलों ने सदैव ही मानव मन को अपनी सरलता, सुकुमारता और खुशबु से अपनी और आकर्षित किया है. फूलों की सुगंध, सुन्दरता और ताजगी में वह जादू होता है जो किसी को भी अपनी और आकर्षित कर लेता है. मनुष्य सदैव फूलों का प्रेमी रहा है. शादी, विवाह, जन्मदिन, सम्मान समारोह या कोइ अन्य ख़ुशी का अवसर हो तब फूलों की याद जरूर आती है और बाजार से विभिन्न प्रकार के फूल मंगवाए जाते हैं.

        मानव का फूलों के प्रति यह आकर्षण अकारण नहीं है, बल्कि इसके पीछे है फूलों की नैसर्गिक प्रवृत्ति और उनसे मिलने वाली प्रसन्नता, सुगंध और प्रेरणा.

     फूलों का भारतीय संस्कृति में वैज्ञानिक, सामजिक और धार्मिक महत्व रहा है. फूलों को देवी देवताओं को चढ़ाने के साथ ही औषधियों के रूप में भी प्रयुक्त किया जाता है. आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में गुलाब के फूलों से गुलाब-जल वर्षों से बनाया जा रहा है. रामायण काल में उल्लेख मिलता है की पुराने समय में वनवासी फूलों के गहने पहनते थे.

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     फूलों का  महत्व तो सभी जानते है. अगर हम गंभीरता से विचार करें तो हमें पता चलेगा की फूल हमें हंसाने-मुस्कुराने और जीवन  जीने की कला भी सिखाते है.

फूलों का  महत्व तो सभी जानते है. अगर हम गंभीरता से विचार करें तो हमें पता चलेगा की फूल हमें हंसाने-मुस्कुराने और जीवन  जीने की कला भी सिखाते है.



      गुलाब का फूल कंटीले पौधे पर खिलता है फिर भी कोमल होता है. कीचड़ में खिलने वाला कमल इस बात का प्रतीक है की इंसान अगर चाहे तो गंदे  वातावरण में भी अच्छा काम कर सकता है. इंसान को हमेशा अच्छे लक्ष्य की और देखना चाहिए.

         मनुष्य अपने जीवन  में छोटी सी समस्या आने पर भी अपनी मुस्कान खो बैठता है और अपने वर्तमान को जीना भूल जाता है. जबकि फूल यह जानते हुए भी की उनका जीवन अल्पकालिक है, अपनी जिंदगी को पूरी खुशी  के साथ जीते हैं.

       फूल आने वाले कल की चिंता ना करते हुए पल-पल खुशबूबिखेरते हैं. अगर इंसान भी यही स्वभाव बना ले तो जिन्दगी की कितनी उदासियाँ आनद में बदल जायें?

       फूलों से हमें जिन्दादिली, प्रेम और परोपकार की प्रेरणा मिलती है. अपने लिए तो सभी जीते हैं परन्तु जो लोग दूसरों की जिन्दगी में आनंद और प्रसन्नता भरने का कार्य करते है, उनकी बात कुछ अलग ही होती है.

(दोस्तों यह लेख मैंने 7 वर्ष पूर्व लिखा था और आज मुझे मिला तो मैंने सोचा कि क्यों न इसे ब्लॉग पर प्रकाशित कर दिया जाए. आप के सुझावों का सहर्ष स्वागत रहेगा.)

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